काशी प्राचीन भारत का विद्या केंद्र एवं विश्वविद्यालय
काशी से ही प्राचीन विद्या का विस्तार
भारत मे वैदिक सभ्यता बहुत दिनों तक पश्चमी प्रान्तों के आबद्ध रही। पूर्वी प्रान्तों में उसके प्रसार में काफी समय लगा। अतः प्रारंभिक वैदिक साहित्य में वाराणसी का उल्लेख न धार्मिक क्षेत्र धार्मिक क्षेत्र में है, न शिक्षा के क्षेत्र में । सर्वप्रथम उपनिषद काल में बनारस एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में परिलक्षित होती है। ब्रह्मज्ञानी राजा अजातशत्रु के समय में यह औपनिषदिक ज्ञान के लिए सुविख्यात थी। किन्तु शिक्षा केन्द्र के रूप में तक्षशिला ही अग्रणी थी। काशी के भी राजकुमार तथा ब्राह्मण युवक उच्च शिक्षा के लिए तक्षशिला ही जाया करते थे। वस्तुतः काशी के अधिकांश सुप्रसिद्ध शिक्षक तक्षशिला के ही विद्यार्थी होते थे।
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किन्तु कालांतर में काशी भी शिक्षा केन्द्र के रूप में सारे देश में प्रसिद्ध हो गयी और यहां भी दूर दूर प्रान्तों से लोग उच्च शिक्षा के लिए आने लगे। तक्षशिला की भांति काशी में भी वेदों के अतिरिक्त 18 शिल्पों की शिक्षा दी जाने लगी थी। महात्मा बुद्ध के समय में काशी पूर्वी भारत का निस्संदेह सबसे बड़ा सांस्कृतिक केंद्र था। संभवत इसलिए भी बुद्ध ने सारनाथ में ही सर्वप्रथम अपने मत का प्रचार आरम्भ किया। तब से सारनाथ बौद्धधर्म तथा बौद्ध शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र रहा। अशोक ने सारनाथ को समृद्ध बनाने की पूरी चेष्टा की। अनुमानतः 12वीं शती ईसवी तक सारनाथ बौद्ध शिक्षा केन्द्र के रूप मे क्रियाशील रहा। इसी शताब्दी में काशी के सनातनी राजा गोविंदचंद्र की बौद्ध रानी कुमार देवी ने सारनाथ विहार को एक दानपात्र अर्पित किया। दुर्भाग्यवश सारनाथ की शिक्षा के संबंध में विशेष बातें उपलब्ध नहीं है। हुएन तसांग भी इसके बारे में मौन ही है।
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- लज्जा राम तोमर
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