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विमानशास्त्र vimana shastra
राष्ट्र मे ही विज्ञान और कला का अरुणोदय देखा। यह निश्चय है की जितनी विद्या और मत भूगोल में फैले है। वे सब आर्यावर्त देश से ही प्रचारित हुए है। यहाँ तोप व वायुयान भौतिक विद्या शिखर पर थी। तब यूरोप में पाषाण युग ही चल रहा था। महर्षि दयानन्द आर्यावर्त में भौतिक उनत्ती के बारे में टिप्पणी करते हुए कहते है- कि प्राचीन काल में हमारे यहाँ दरिद्र के घर भी विमान थे। फ़्रांस देश निवासी गोल्ड्स्टकर अपनी प्रसिद्द पुस्तक “Bible In India” में लिखते है, कि “सब विद्या और भलाइयों का भण्डार आर्यावर्त देश है। और सब विद्या और मत इसी देश से फैले है। हे परमेश्वर ! जैसी उन्नति आर्यावर्त देश की पूर्व काल में थी वैसी उन्नति हमारे देश में कीजिए”। इसी प्रकार ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री ‘लार्ड पार्मस्टन ‘ 12 फ़रवरी, 1958 को ब्रिटिश लोकसदन में कहते है कि “जब आर्यावर्त में सभ्यता व संस्कृति अपने शिखर पर पहुँच चुकी थी, तब यूरोप वाले नितांत जंगली थे”। www.vedicpress.com
इसी प्रकार अनेकों विदेशी विद्वानों ने एक स्वर में हमारे पूर्वजों को श्रेष्ठ माना है। परन्तु आज हमारे देशवासी इस बात को पढ़कर चकित हो जाते है, कि “ऋषियों ने अमेरिका से भी बढ़कर उन्नति की थी” साधारण सी बात है, कि मेंढक कूप में रहता है वह समुन्द्र के अस्तित्व में यदि शंका करें तो कर सकता है परन्तु उसकी शंका से समुन्द्र का लोप नहीं होगा। vimana shastra
मेरी इतिहास परिभाषा – हमारे पूर्वजों व हमारे राष्ट्र का इतिहास विकृत होने तथा पश्चिम विचारधारा के कारण हम इतिहास को ‘गड़े मुर्दे उखाड़ना’ कहने लगे। यूरोप वाले नहीं चाहते की भारतवासी अपने स्वर्णिम अतीत को जानकर स्वाभिमान और गर्व की अनुभूति करके विश्व पटल पर छाएँ। यूरोप वालो के पास इतिहास के नाम पर अभाव के अतिरिक्त कुछ नहीं है इसलिए ‘आज में जिओं’ थोप दिया। लगभग 1235 वर्ष की गुलामी के काल से ही शत्रुभाव से किये गए। इस विदेशी प्रचार द्वारा आर्य (हिन्दुओं) को इतना हतोत्साह किया गया कि बहुत से हिन्दू अपने आप को सबसे बुद्धू और पिछड़े मानने लगे। www.vedicpress.com vimana shastra
ऐसे व्यक्तियों को तुरंत प्राचीन वैदिक साहित्य के अध्ययन में मग्न हो जाना चाहिए। महान ज्ञान-विज्ञानयुक्त वैदिक विरासत के संवाहकों को सोने का कटोरा लेकर भीख मांगते शोभा नहीं देता। सारे विश्व का सुख चाहने वाले हमारे आर्य पूर्वजों व वैदिक साहित्य के सहाय से पाश्चात्यों ने भौतिक उन्नति हेतु परिश्रम किया है इसमें कोई दो राय नहीं परन्तु मात्र 100-200 साल की इस भौतिक उन्नति से विश्व को मृतप्राय प्रकृति, शोषण, भय, आतंकवाद, युद्ध, अनाचार-व्याभिचार, भ्रष्टाचार, बीमारियाँ आदि के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं हुआ है।
हजारों वर्ष पूर्व परमाणु का सिद्धांत बताने वाले “महर्षि कणाद” ने सर्वांगीण उन्नति की व्याख्या करते हुए कहा था “यतोअभ्युदयनि: श्रेयस सिद्धि स धर्म:” अर्थात् जिन सिद्धांतों साधनों आदि को अपनाने से भौतिक तथा आध्यत्मिक उन्नति प्राप्त हो वह धर्म है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि आध्यात्मिक उन्नति या वैदिक सिद्धांतों के बिना भौतिक उन्नति स्थाई नहीं हो सकती।
वेद धर्म और विज्ञान को एक-दुसरे का पूर्वक कहता है अर्थात् धर्म विज्ञानयुक्त होता है। और विज्ञान धर्मयुक्त होता है इसी सिद्धांत को अपनाए बिना भौतिक उन्नति जीव मात्र के दुःख का हेतु है। पिछली कुछ सदियों में यह वैदिक ज्ञान-विज्ञान की धारा कुछ अवरुद्ध-सी हो गयी थी। इसका कारण हिन्दुओं का पूर्ण-वैज्ञानिक वैदिक धर्म से दूर होकर मिथ्या अधर्मयुक्त अवैज्ञानिक मत-पंथ, सम्प्रदायों आदि में पढना ही था। इसका लाभ उठाकर हमारे शास्त्रों से ज्ञान-विज्ञान की समस्त विद्या विदेशियों ने प्राप्त की। हमारे ऋषियों के प्रति कृतज्ञ होने के बजाय उन्हें इसके लिए अवैज्ञानिक आदि झूठ प्रचारित किया। पाश्चात्य लोग दो-चार सौ वर्ष पूर्व इतने पिछड़े हुए थे कि जंतुओं से रोग होते है। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। आदि प्राथमिक बातें तक उन्हें ज्ञात नहीं थी। वैदिक धर्म का संवाहक यह आर्यावर्त देश करोड़ों वर्षों तक कला, संस्कृति, विज्ञान आदि सभी दृष्टियों से अग्रणी रहा है। www.vedicpress.com
वर्तमान युग में विमान को विज्ञान की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि व क्रांतिकारी आविष्कार माना जाता है। पाश्चात्यों को भले ही इस विद्या का पता सौ-सवा सौ साल पहले चला हो किन्तु आर्यावर्त में हजारों-लाखों वर्ष पहले भी इसी विज्ञान का पल्लवित रूप विधमान था। वाल्मीकि ने रामायण में पुष्पक विमान विषय में लिखते हुए कहा है कि वह स्वर्ण की जालियों और स्फटिकनिर्मित खिडकियों से युक्त था। विभीषण अपने विमान बेड़े के साथ श्री राम से मिलने पहुंचे थे। अभिज्ञान शाकुंतल में भी विमान के विषय का स्पष्ट उल्लेख और राजर्षि दुष्यंत के प्रयोग भासित होता है। www.vedicpress.com
एक प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ “गयाचिन्तामणि” में मयूर जैसे आकार के विमान का उल्लेख है। भागवतम में शाल्व राजा के विमान का स्पष्ट उल्लेख मिलता है शाल्व का विमान भूमि आकाश, जाल, पहाड़ आदि पर चलता था। महाराजा भोज के ग्रन्थ समरांगण –सूत्रधार ग्रन्थ में भी विमान की रचना ‘दारुमयपक्षी’ की रचना के रूप में ही कहीं गयी है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि लम्बी गुलामी तथा शत्रुभाव से प्राचीन संस्कृत साहित्य का यथासामर्थ्य विनाश किया गया है। इसी कारण विमान विषय पर विस्तार से जानकारी प्रदान करने वाला साहित्य लुप्तप्राय ही हैं। सौभाग्य से एक ग्रन्थ महर्षि भारद्वाजकृत “बृहद्विमानशास्त्र” brihad vimana shastra नमक ग्रन्थ काफी प्राचीन प्रति मेरे हाथ लगी, हो सकता हैं एक प्रति बडौदा राजकीय पुस्तकालय में भी हो क्योंकि इसी पुस्तकालय से सहायता आदि लेकर दिल्ली सरकार की संस्कृत अकादमी इस ग्रन्थ का संस्कृत में प्रकाशन करने की योजना बना रही है। अस्तु जो भी हो इस ग्रन्थ में अत्यंत उच्च व उन्नत कोटि की विमानविद्या vimana shastra का प्रतिपादन किया गया हैं मैंने अपनी योग्यतानुसार उस दुर्लभ ग्रन्थ के सहारथ से प्राचीन विमानविद्या का एक खाका सींचने का प्रयास किया है। प्रस्तुत पुस्तक को पढने वाले प्रत्येक भारतीय के ह्रदय में स्वदेशाभिमान की भावना बलवती होगी। आप जानेंगे कि इस संसार में जो भी कुछ अच्छा है वह हमारा है और आज तक जितने भी वैज्ञानिक आविष्कार हुआ है वह हमारा ही है या होंगे उस सबका आदि मूल वेद हैं। सामान्य आर्यंभाषा में लिखी इस शोधपूर्ण पुस्तक को पढने वाले प्रत्येक ह्रदय में स्वदेश व स्वधर्म के प्रति स्वाभिमान उत्पन्न होता है। तो मैं अपना परिश्रम सफल समझूंगा भारतवासी आर्यों (श्रेष्ठों) को अपना स्वाभिमान जगाकर फिर से सरे विश्व में पूर्ण सुखदायी वैदिक संस्कृत के प्रचार-प्रसार में लगकर विश्वगुरु भारत का लक्ष्य प्राप्त करने में यथासामर्थ्य योगदान देना चाहिए।
प्राचीन भारत में ज्ञान-विज्ञान मेरा प्रिय विषय है। इस विषय धरातल पर पुस्तकारूप में प्रस्तुत करने में मेरे आर्य (श्रेष्ठ) मित्रों का आभार ।
. राहुल आर्य (वैदिक धर्मी)
हम इस लेख में आप सभी आर्य/हिन्दू भाइयों को बहुत ही मूल्यवान ग्रन्थ “विमानशास्त्र” www.vedicpress.com की तरफ से आप सभी भाइयों को सप्रेम भेंट करते है। आप सभी भाइयों/बुजर्गों/माताओं व बहनों का हमसे जुड़े रहने से लिए सह-आभार । हम आपके सम्पूर्ण जीवन में खुशहाली की कामना करते है। आप 100 सौ वर्षों तक निरोग रहे, आपका परिवार सर्वदा सभी दुखों से दूर व सुखों से परिपूर्ण रहे । और इस देश उन्नति में हमारा और आपका साथ बना रहे। ताकि हम अपने देश भारत को एक बार फिर से विश्वगुरु बना सके।
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